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क्या बेटी को खोने का दुख जताना भी अपराध है? बगड़ तिराहा पर इंसाफ मांगती माँ को धक्के देती अलवर पुलिस!
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क्या बेटी को खोने का दुख जताना भी अपराध है? बगड़ तिराहा पर इंसाफ मांगती माँ को धक्के देती अलवर पुलिस!

क्या बेटी को खोने का दुख जताना भी अपराध है? बगड़ तिराहा पर इंसाफ मांगती माँ को धक्के देती अलवर पुलिस!

अलवर जिले के बगड़ तिराहा थाना क्षेत्र में दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक माँ अपनी बेटी की संदिग्ध मौत के बाद न्याय की गुहार लगा रही थी। लेकिन न्याय तो दूर, पुलिस ने उसे धक्के मारकर मौके से हटा दिया। क्या अब न्याय माँगना भी गुनाह है?


जिस माँ ने अपनी बेटी को खोया है, वो इंसाफ की उम्मीद लिए जब पुलिस के पास पहुँची तो वहाँ से उसे सहानुभूति नहीं, बल्कि धक्के मिले। वर्दीधारी ही नहीं, एक सफेद शर्ट में मौजूद पुलिसकर्मी ने भी वृद्ध महिला को धक्का देकर पीछे किया। यह सिर्फ अमानवीयता नहीं, बल्कि कानून और संविधान की भी खुली अवहेलना है।


क्या पुलिस अब "जनसेवक" नहीं बल्कि "शक्ति प्रदर्शन" का माध्यम बन चुकी है? क्या वर्दी अब सुरक्षा का प्रतीक नहीं, डर और दबाव का प्रतीक बनती जा रही है?


यह घटना सिर्फ एक महिला के साथ नहीं, पूरे समाज के भरोसे के साथ हुआ अन्याय है।
बगड़ तिराहा की इस शर्मनाक घटना ने न केवल अलवर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है।


माँ की आँखों के आँसू पूछ रहे हैं – क्या मेरी बेटी को न्याय मिलेगा?
और हम सब पूछ रहे हैं – क्या पुलिस जवाब देगी?



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