देवभूमि उत्तराखंड में चल रही चारधाम यात्रा एक ओर जहाँ आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर मौत के आंकड़े लगातार चिंता बढ़ा रहे हैं। इस वर्ष यात्रा के मात्र 29 दिनों में कुल 68 श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है बल्कि यात्रा व्यवस्थाओं और श्रद्धालुओं की स्वास्थ्य स्थिति पर भी सवाल खड़े करता है।
धामवार मौतों का आंकड़ा
चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की मृत्यु के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे इस प्रकार हैं:
- केदारनाथ धाम: 30 मौतें
- गंगोत्री धाम: 14 मौतें
- बद्रीनाथ धाम: 12 मौतें
- यमुनोत्री धाम: 12 मौतें
इन 68 मृतकों में से 60 श्रद्धालु ऐसे थे जो पहले से ही किसी न किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित थे, जैसे कि हृदय रोग, सांस संबंधी दिक्कतें, या डायबिटीज।
अन्य कारणों से भी हुई मौतें
बाकी 8 लोगों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है, जिनमें से कुछ की जान उत्तरकाशी में हुए हेलिकॉप्टर क्रैश में गई। ये घटनाएं यात्रियों की सुरक्षा और आपातकालीन व्यवस्थाओं को लेकर सवाल खड़े करती हैं।
क्यों हो रही हैं इतनी मौतें?
चारधाम यात्रा ऊँचाई वाले, दुर्गम और ठंडे इलाकों में होती है। यहाँ ऑक्सीजन की कमी, कठिन चढ़ाई और ठंड के कारण बीमार या बुजुर्ग यात्रियों के लिए खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना मेडिकल जांच के यात्रा पर निकलना, दवाइयों का अभाव और आपात स्थिति में समय पर उपचार न मिलना मौतों की मुख्य वजह बन रहा है।
क्या करें श्रद्धालु?
- यात्रा से पहले स्वास्थ्य जांच कराना जरूरी है।
- पुरानी बीमारियों वाले श्रद्धालु डॉक्टर से परामर्श लेकर ही यात्रा करें।
- सरकार और प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करें।
- यात्रा के दौरान पूरा आराम, पर्याप्त पानी और समय-समय पर दवा लेना न भूलें।
सरकार से अपेक्षा
इन घटनाओं के बाद यह जरूरी हो गया है कि सरकार:
- यात्रा मार्गों पर मेडिकल सुविधाएं बढ़ाए,
- ऑक्सीजन स्टेशनों की संख्या बढ़ाए,
- और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए तकनीकी निगरानी जैसे ड्रोन या हेल्पलाइन सिस्टम और मजबूत करे।
चारधाम यात्रा भक्ति और आस्था का पर्व है, लेकिन इसके साथ-साथ यह एक शारीरिक चुनौती भी है। इस यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए श्रद्धालु और प्रशासन दोनों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।