मानवता को झकझोर देने वाला हादसा – आखिर कब जागेगी भाजपा सरकार? लेकिन सवाल सिर्फ सत्ता पक्ष से ही क्यों?

ताराचन्द खोयड़ावाल
संस्थापक: मजदूर विकास फाउंडेशन
संपादक: प्रगति न्यूज़

जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में चार सफाईकर्मियों की सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से हुई मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह बताती है कि सफाईकर्मियों की सुरक्षा आज भी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं है।

भाजपा सरकार से सवाल जरूरी हैं:

राजस्थान में भाजपा की सरकार को आए महीनों हो चुके हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि सफाईकर्मियों की सुरक्षा के लिए अब तक क्या ठोस कदम उठाए गए? क्या सीवरेज सफाई के लिए मशीनीकरण पर कोई नीति बनी? क्या ठेकेदारों को जवाबदेह बनाने का कोई तंत्र स्थापित हुआ?

अगर नहीं, तो फिर यह केवल संवेदनाएं व्यक्त करने का समय नहीं है, बल्कि कठोर कार्रवाई और जवाबदेही तय करने का भी समय है।

लेकिन सवाल विपक्ष से भी जरूरी हैं:

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय टीकाराम जूली जैसे नेता श्रम मंत्री (2018-2021) और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री (2021-2023) रहे। वे आज नेता प्रतिपक्ष हैं और सरकार से सवाल पूछ रहे हैं — यह उनका अधिकार है, लेकिन पहले यह जवाब देना भी जरूरी है कि जब उनके पास विभागीय शक्तियां थीं, तब उन्होंने क्या किया?

श्रम मंत्री के तौर पर (2018–2021):
टीकाराम जूली के पास कारखाना एवं बॉयलर्स निरीक्षण विभाग था, जो औद्योगिक इलाकों की कार्यस्थल सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला प्रमुख विभाग है। उस दौरान मजदूरों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से निरीक्षण किए गए? कितने संस्थानों को नोटिस दिए गए? क्या सीवरेज सफाई में मैनुअल स्केवेंजिंग पर कोई रोक या जागरूकता अभियान चला?

इसके विपरीत, स्थानीय लोगों से रोजगार छीनने जैसे फैसले लिए गए — 60 किलोमीटर दायरे में रहने वाले लोगों को ही फैक्ट्री में रोजगार देने से इनकार किया गया। यह न केवल ग्रामीण बेरोजगारी को बढ़ाने वाला निर्णय था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि ‘स्थानीय हित’ तब कैसे नजरअंदाज हुए।

सामाजिक न्याय मंत्री के तौर पर (2021–2023):
सफाईकर्मियों का अधिकार, पुनर्वास, सुरक्षा और गरिमा का जीवन इस मंत्रालय की प्राथमिक जिम्मेदारी थी। लेकिन न तो मैनुअल स्केवेंजिंग पर कोई प्रभावशाली रोक लग सकी, न ही उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम दिखे।

अब सवाल यह है: मजबूरी क्या थी?

क्या सफाईकर्मियों की सुरक्षा कभी राजनीतिक प्राथमिकता नहीं रही? क्या ये वर्ग केवल चुनावी घोषणाओं का हिस्सा बनकर रह गया है? दोनों ही दलों – भाजपा और कांग्रेस – के लिए यह आत्ममंथन का विषय है।

हादसों पर नहीं, नीतियों पर बात होनी चाहिए:

हर बार जब कोई हादसा होता है, तब राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो जाती है। संवेदनाएं आती हैं, मुआवज़ा घोष‍ित होता है और कुछ दिनों बाद सब भूल जाते हैं। लेकिन जमीनी सच्चाई नहीं बदलती – आज भी सफाईकर्मी बिना सुरक्षा उपकरणों के जान हथेली पर रखकर सीवरेज में उतरते हैं।

अब वक्त है जवाबदेही तय करने का।

क्या सफाईकर्मियों की मौतें सिर्फ आंकड़े हैं?
क्यों नहीं बनते हैं सफाईकर्मियों के लिए स्थायी पुनर्वास और वैकल्पिक रोजगार के मॉडल?
क्यों नहीं होती ठेकेदारों पर सख्त कार्रवाई और काली सूचीबद्धता?

जब तक सरकारें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सफाईकर्मियों की सुरक्षा, सम्मान और पुनर्वास के लिए ठोस योजनाएं नहीं बनातीं, तब तक इस तरह की घटनाएं केवल अखबार की सुर्खियां बनती रहेंगी।



 


Bharat Ka Apna Payments App-a UPI Payment App! 

Flat Rs 20 Cashback on Prepaid Mobile Recharge of Rs 199 and Above