ज्ञानदेव आहूजा दलित विरोधी बयान के चलते भाजपा से निष्कासित, नोटिस जारी | मंदिर विवाद में फंसे पूर्व विधायक

ज्ञानदेव आहूजा दलित विरोधी बयान के चलते भाजपा से निष्कासित, नोटिस जारी | मंदिर विवाद में फंसे पूर्व विधायक
ज्ञानदेव आहूजा दलित विरोधी बयान के चलते भाजपा से निष्कासित, नोटिस जारी | मंदिर विवाद में फंसे पूर्व विधायक

08 अप्रैल, 2025 | राजस्थान राजनीति समाचार

अलवर, राजस्थान: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने रामगढ़ से पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा को दलित विरोधी बयान देने और अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है। साथ ही उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है। यह फैसला राजस्थान की राजनीति में एक बड़ी हलचल के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

रामगढ़ (जिला अलवर) स्थित श्रीराम मंदिर में राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष श्री टीकाराम जूली, जो एक दलित समुदाय से आते हैं, ने पूजा-अर्चना और दर्शन किए। इसके विरोध में ज्ञानदेव आहूजा ने सार्वजनिक बयान देते हुए कहा कि “मंदिर में गंगाजल से छिड़काव किया जाएगा”। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने बाद में स्वयं मंदिर जाकर गंगाजल का छिड़काव भी किया।

भाजपा ने लिया सख्त संज्ञान

भाजपा प्रदेश महामंत्री एवं सांसद दामोदर अग्रवाल द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस में कहा गया है कि यह कृत्य भारतीय जनता पार्टी की मूल विचारधारा और नीतियों के खिलाफ है। पार्टी की सदस्यता लेते समय आहूजा ने यह प्रतिज्ञा की थी कि वे अस्पृश्यता, जातिगत भेदभाव और मजहबी असहिष्णुता को नहीं मानेंगे, परंतु उनके कथन और आचरण से पार्टी की छवि धूमिल हुई है।

भाजपा की दलित नीति और समरसता का संदर्भ

नोटिस में यह भी स्मरण कराया गया है कि 9 नवम्बर 1989 को जब श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास हुआ था, तब पहली शिला एक दलित प्रतिनिधि श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा रखी गई थी। यह भारतीय जनता पार्टी की समरसता की नीति और दलित समुदाय के प्रति सम्मान का प्रतीक है।

स्पष्टीकरण के लिए तीन दिन की मोहलत

भाजपा राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष के निर्देशानुसार ज्ञानदेव आहूजा को तीन दिनों के भीतर लिखित में स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है। यदि वे समय पर जवाब नहीं देते हैं, तो उन्हें दोषी मानते हुए अग्रिम अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

राजनीतिक विश्लेषण और असर

इस पूरे घटनाक्रम ने राजस्थान की राजनीति में जातीय समरसता और भाजपा की नीतियों को लेकर बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि दलित समाज के खिलाफ किसी भी प्रकार के भेदभाव को लेकर भाजपा अब सख्त रुख अपना रही है, खासकर 2025 के आगामी चुनावों को देखते हुए।


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