खैरथल में कांग्रेस की हुंकार: "सरकार बताए, मिनी सचिवालय क्यों नहीं?"

खैरथल, 18 मई: राजनीतिक रूप से चर्चित खैरथल एक बार फिर सुर्खियों में है। रविवार को इस्माईलपुर रोड स्थित मोटल रॉयल इन में कांग्रेस पार्टी ने प्रेस वार्ता आयोजित कर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। इस मौके पर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह, विधायक ललित यादव, वरिष्ठ नेता दीपचंद खैरिया, किशनगढ़बास प्रधान बी.पी. सुमन, कांग्रेस जिलाध्यक्ष योगेश मिश्रा, गिरीश डाटा और विक्की चौधरी सहित कई प्रमुख कांग्रेस नेता मौजूद रहे।
प्रेस वार्ता में मुख्य मुद्दा रहा – खैरथल-तिजारा जिले में मिनी सचिवालय की स्थापना में हो रही देरी। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने सरकार से तीखे सवाल पूछते हुए कहा,

“जब नया जिला बना दिया गया है, तो फिर मिनी सचिवालय की स्थापना में क्या अड़चन है? क्या सरकार जानबूझकर खैरथल की जनता से वादा खिलाफी कर रही है?”

टीकाराम जूली ने बिना किसी का नाम लिए आरोप लगाया कि कहीं यह सब कुछ भू-माफियाओं को फायदा पहुंचाने की योजना का हिस्सा तो नहीं है। उन्होंने आशंका जताई कि कहीं प्रशासनिक कार्यालयों को खैरथल से हटाकर किसी अन्य जगह स्थानांतरित करने की साजिश तो नहीं रची जा रही?

पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जनता के साथ किए गए वादों को दरकिनार करना लोकतंत्र का अपमान है।

टीकाराम जूली ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा:

"माननीय केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव चुनाव से पहले कहते थे कि खैरथल को चंडीगढ़ जैसा बनाएंगे। आज वही सरकार खैरथल में एक मिनी सचिवालय तक नहीं खोल पा रही। क्या यही है चंडीगढ़ मॉडल?"

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने शीघ्र ही स्पष्ट रुख नहीं अपनाया और निर्माण कार्यों में पारदर्शिता नहीं दिखाई, तो कांग्रेस सड़कों पर उतरकर जोरदार आंदोलन करेगी।

“गरीबों के हक में आवाज उठेगी, और भू-माफियाओं को लाभ पहुंचाने वाले किसी भी फैसले को कांग्रेस बर्दाश्त नहीं करेगी,” उन्होंने दो टूक कहा।




जनता के सवाल – जवाब दे सरकार

खैरथल की जनता भी अब सरकार से जवाब चाहती है। मिनी सचिवालय और जिला कार्यालयों की स्थापना को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार जानबूझकर इस मुद्दे को लटका रही है ताकि कुछ विशेष वर्गों को भूमि लाभ दिया जा सके।

अब देखना यह होगा कि क्या सरकार जनता और विपक्ष के इन सवालों का जवाब देगी या यह मुद्दा भी चुनावी वादों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

 


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