जयपुर | प्रगति न्यूज़ कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार पदों की गरिमा और सरकारी प्रोटोकॉल को लेकर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। इस बार चर्चा में हैं राजस्थान के विधायक बालमुकुंद आचार्य, जिन्होंने रामगंज थाने में थानाधिकारी की कुर्सी पर बैठकर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग की।
इस बैठक में रामगंज, गलता गेट और माणक चौक थानों के थानाधिकारी उपस्थित थे। मीटिंग का विषय आगामी कांवड़ यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर था, लेकिन जिस तरह से विधायक थानाधिकारी की कुर्सी पर बैठकर बैठक लेते नजर आए, वह अब विवाद का कारण बन गया है।
"क्या विधायक थानाधिकारी की कुर्सी पर बैठ सकते हैं?" इसके लिए स्पष्ट नियम और सरकारी प्रोटोकॉल मौजूद हैं, जो नीचे दिए जा रहे हैं:
📜 थाने में अधिकारी के पद और प्रोटोकॉल से जुड़े नियम:
✅ 1. थानाध्यक्ष की कुर्सी:
- थाने में थानाधिकारी (SHO / Station House Officer) की कुर्सी एक कार्यकारी पद की पहचान है।
- यह कुर्सी सिर्फ कार्यकारी थानाधिकारी या उच्च पुलिस अधिकारियों के लिए ही होती है।
- किसी भी जनप्रतिनिधि (जैसे विधायक, सांसद) को उस कुर्सी पर बैठने का संवैधानिक अधिकार नहीं होता।
⚠️ 2. प्रोटोकॉल का उल्लंघन:
- नियमों के तहत, थाने में कोई भी जनप्रतिनिधि थाना प्रभारी की कुर्सी पर नहीं बैठ सकता।
- यह पुलिस विभाग की गरिमा और कमान की स्पष्टता से जुड़ा मामला है।
- विधायक चाहे जनप्रतिनिधि हों, लेकिन वे थाने के कार्यकारी प्रमुख नहीं होते।
🧾 3. गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस:
- गृह मंत्रालय (राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर) की गाइडलाइन में स्पष्ट है कि:
“थाने में पदनाम की कुर्सी पर बैठने का अधिकार उस पद के अधिकृत अधिकारी को ही होता है।”
🛑 4. अगर बैठते हैं, तो क्या कार्रवाई संभव है?
- यह प्रोटोकॉल उल्लंघन की श्रेणी में आता है।
- इसे लेकर पुलिस विभाग आंतरिक रिपोर्ट या अनुशासनात्मक टिप्पणी भेज सकता है।
- हालांकि विधायक या सांसद पर सीधे कोई कानूनी दंड नहीं होता, पर लोक सेवा नियमों का उल्लंघन मानकर विवाद उत्पन्न हो सकता है।
विधायक बालमुकुंद आचार्य का थानाधिकारी की कुर्सी पर बैठना प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, भले ही वह मीटिंग कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजन की सुरक्षा को लेकर क्यों न हो। शासन-प्रशासन की गरिमा बनाए रखने के लिए सभी को तय मर्यादा में रहकर कार्य करना चाहिए।