पढ़ेगा इंडिया तो आगे बढ़ेगा इंडिया का नारा हुआ फेल बच्चों का भविष्य डूबा अंधकार में

अनिल बजाज ब्यूरो चीफ खैरथल तिजारा 

सरकार सो रही है, बच्चे रो रहे हैं – मांघा का माजरा गाँव आज भी स्कूल के इंतजार में 

सरकार सो रही है, बच्चे रो रहे हैं

हमारे गांव मांघा का माजरा विद्यालय हमारा कब खुलेगा — ये आस लगाए बैठे हैं।


ये शब्द हैं मांघा का माजरा पंचायत के ग्रामीणों के, जिनके दिल में वर्षों से केवल एक ही अभिलाषा है — गाँव में एक सरकारी विद्यालय खुल जाए।


अलवर जिले की कोटकासिम तहसील के अंतर्गत आने वाला मांघा का माजरा ग्राम पंचायत तिगांव में स्थित है, जहाँ आज भी शिक्षा के नाम पर सिर्फ सपना देखा जाता है। छोटे-छोटे बच्चे आज भी 2 से 5 किलोमीटर दूर दूसरे गांवों में पढ़ने के लिए मजबूर हैं। बारिश, धूप, खेतों की पगडंडियों और जंगली रास्तों से होकर स्कूल जाने का यह संघर्ष कोई नई बात नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की मजबूरी बन चुका है।

गांव के बुजुर्गों और माता-पिता का कहना है:


 "हम अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन हर दिन उन्हें इतने दूर भेजना डराता है। अगर गांव में ही स्कूल हो, तो हम भी गर्व से कह सकें कि हमारे बच्चे शिक्षित हो रहे हैं।"


जयपुर भूमि समाचार पत्र के ब्यूरो हेड जयवीर सिंह ने बताया कि इस समस्या को पहले भी संबंधित जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के समक्ष उठाया गया है, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

उन्होंने कहा:

शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, और यदि सरकारें इस अधिकार को देने में असफल हैं तो यह चिंता का विषय है। मांघा का माजरा के बच्चों को भी वही हक़ मिलना चाहिए जो शहरों में रहने वाले बच्चों को मिलता है।

ग्रामीणों की माँगें:

  1. गांव में प्राथमिक विद्यालय की शीघ्र स्थापना
  2. योग्य शिक्षकों की नियुक्ति
  3. विद्यालय तक पक्की सड़क और सुरक्षा की व्यवस्था

अब देखना यह है कि क्या सरकार इन मासूम आँखों की उम्मीदों को समझेगी या मांघा का माजरा यूँ ही “विद्यालय के इंतज़ार में” सिसकता रहेगा?


सरकार सिर्फ झूठे वादे करती हैं, निभाती नहीं, ये इसका परिणाम हैं, जो सभी अधिकारीयों को लिखित पत्र देने के बाद भी बच्चों की आवाज को अन सुना किया जा रहा हैं। 

ऐसा क्यू?




 


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