देवी के वस्त्र बदलने पर उठा सवाल: पवित्रा पुनिया के बयान से धार्मिक परंपराएं बहस के घेरे में

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मुंबई/दिल्ली, मंदिरों में देवी की प्रतिमाओं के वस्त्र बदले जाने की सदियों पुरानी परंपरा आज एक नई बहस का विषय बन गई है। टीवी और बॉलीवुड अभिनेत्री पवित्रा पुनिया ने एक पॉडकास्ट में बयान देते हुए सवाल उठाया कि – "एक पुरुष पुजारी को देवी के वस्त्र बदलने का अधिकार किसने दिया?"

पुनिया ने कहा कि,

“मंदिर में देवी के कपड़े कोई पंडित कैसे बदल सकता है? ऐसा एक आदमी नहीं कर सकता। यह हक किसने दिया? तुम पूजा करो, तुम पुजारी हो। माता पार्वती के नहाने के समय भगवान गणेश को बाहर खड़ा किया गया था। उन्होंने शिवजी को भी नहीं आने दिया था। तुम मर्द हो, देवता की पूजा करो, देवी के कपड़े मत बदलो।”

🛕 परंपरा बनाम भावना

यह बयान न केवल सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, बल्कि धर्मगुरुओं और आम लोगों के बीच तीखी बहस भी छिड़ गई है।

  • परंपरावादी पक्ष का मानना है कि मंदिरों में देवी-देवताओं के वस्त्र बदलना पूजा प्रक्रिया का हिस्सा है, जो शास्त्रों और परंपरा द्वारा निर्देशित है। पुजारी सिर्फ एक माध्यम हैं, उनकी नीयत और आस्था ही प्रमुख है।

  • वहीं, आधुनिक और स्त्री-केंद्रित दृष्टिकोण यह कहता है कि यह कार्य किसी महिला द्वारा किया जाना चाहिए या इसे लेकर नए नियम बन सकते हैं, ताकि स्त्री सम्मान और गरिमा का ध्यान रखा जाए।

📿 क्या यह केवल आस्था का विषय है?

भारत जैसे विविधता भरे देश में आस्था और संवेदनशीलता के बीच संतुलन साधना आसान नहीं है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि अगर इस मुद्दे को सही भावना से देखा जाए, तो मंदिरों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और लैंगिक समानता पर चर्चा का यह एक अवसर हो सकता है।

🗣️ सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं:

  • कुछ यूज़र्स ने पवित्रा पुनिया की हिम्मत की सराहना की।
  • जबकि कई लोगों ने इसे अज्ञानतावश दिया गया बयान कहा और परंपरा का सम्मान करने की सलाह दी।

पवित्रा पुनिया के बयान ने एक जरूरी प्रश्न खड़ा किया है – क्या परंपराएं भी समय के साथ समीक्षा योग्य हैं?

धार्मिक रीति-रिवाजों में सुधार की कोई भी पहल बहुत सोच-समझकर और सम्मानपूर्वक की जानी चाहिए ताकि न तो आस्था आहत हो और न ही सामाजिक चेतना रुके।



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