– न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सरलता पर ज़ोर
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ा एक अहम फैसला सामने आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शपथ पत्र के फोटो सत्यापन के नाम पर वकीलों और वादकारियों से ₹500 शुल्क वसूले जाने पर सख्त रुख अपनाते हुए तत्काल प्रभाव से इस वसूली पर रोक लगा दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने एक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया। याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष यह सवाल उठाया था कि जब शपथ पत्र पर लगी फोटो पहले से ही आधार कार्ड या अन्य वैध दस्तावेजों के आधार पर सत्यापित की जाती है, तो फिर अतिरिक्त ₹500 की वसूली का क्या औचित्य है?
हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न्याय का मार्ग सरल और सुलभ होना चाहिए, जिसमें किसी भी प्रकार की अनावश्यक बाधा या आर्थिक बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। अदालत ने टिप्पणी की कि यह शुल्क वसूली न्याय प्रक्रिया की गरिमा के विरुद्ध है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
दरअसल, कुछ मामलों में दाखिल किए जाने वाले शपथ पत्रों पर फोटो सत्यापन के लिए ₹500 का शुल्क वसूला जा रहा था। यह शुल्क कथित रूप से बार एसोसिएशन और फोटो आइडेंटिफिकेशन केंद्रों द्वारा लिया जा रहा था, जिससे आम वादकारी को आर्थिक बोझ उठाना पड़ता था।
कोर्ट का आदेश और चेतावनी
न्यायालय ने अवध बार एसोसिएशन और फोटो आइडेंटिफिकेशन केंद्रों को नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि इस आदेश की अवहेलना की जाती है, तो इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि सत्यापन की प्रक्रिया एक वैधानिक आवश्यकता हो सकती है, लेकिन इसके नाम पर अवैध वसूली नहीं की जा सकती।
न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की दिशा में कदम
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और आम नागरिकों के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल भ्रष्टाचार और मनमानी पर लगाम लगेगी, बल्कि अदालतों में जनसाधारण का विश्वास भी और मजबूत होगा।