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राजस्थान: दलित युवक पर जानलेवा हमला, मंत्री के दामाद पर केस, भीमसेना की अगुवाई में FIR दर्ज

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स्थान: बारा भड़कोल छिलोडी, थाना मालाखेड़ा, जिला अलवर, राजस्थान

घटना की तारीख: [27/04/2025]
By: प्रगति न्यूज़ | ताराचन्द खोयड़ावाल


दलित युवक पर हमला: सत्ता के दंभ में डूबे गुंडों की गुंडागर्दी

राजस्थान में एक बार फिर दलित समाज को अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा है। अलवर जिले के मालाखेड़ा थाना क्षेत्र के गांव बारा भड़कोल छिलोडी में एक दलित युवक पर जानलेवा हमला हुआ। आरोपियों ने काम के बहाने बुलाकर उसे बुरी तरह पीटा, लाठी-सरियों से हमला किया और जबरन स्विफ्ट डिजायर कार में डालने की कोशिश की। युवक को कट्टा दिखाकर धमकाया गया और ₹48,000 की नकदी भी लूट ली गई।


मंत्री का दामाद मुख्य आरोपी, धमकी भी दी

इस हमले में नामजद आरोपी बीजन पुत्र बाबू (बोनिया) गुर्जर निवासी बांदका बड़ोदा मेव और उसके दो साथी हैं। पीड़ित का आरोप है कि बीजन ने खुलेआम कहा:

"मैं मंत्री जवाहर सिंह बेढम का दामाद हूं, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता!"

यह बयान इस बात का प्रतीक है कि सत्ता का संरक्षण किस तरह अपराधियों को बेलगाम बना देता है।


भीमसेना के नेतृत्व में न्याय की लड़ाई

इस घटना के बाद शेर सिंह बौद्ध, प्रदेश उपाध्यक्ष भीमसेना, के नेतृत्व में बड़ी संख्या में समाज के लोग मालाखेड़ा थाने पहुंचे। उनकी अगुवाई में पीड़ित युवक के समर्थन में पुलिस पर दबाव बनाया गया और पूरी टीम ने एकजुट होकर FIR दर्ज करवाई। यह कदम यह दर्शाता है कि अगर समाज संगठित हो, तो अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद की जा सकती है।


दलित नेताओं की चुप्पी शर्मनाक

जहां एक ओर सामाजिक संगठन सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग कर रहे हैं, वहीं राजस्थान के कई दलित नेता इस घटना पर मौन हैं।
क्या यह चुप्पी सत्ता के दबाव की वजह से है?
क्या दलित नेता अब केवल आरक्षण की राजनीति और सत्ता की दलाली में व्यस्त हैं?


मांगें और सुझाव:

  1. मुख्य आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी की जाए।
  2. पीड़ित को पुलिस सुरक्षा और मुआवज़ा दिया जाए।
  3. राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना निष्पक्ष जांच हो।
  4. राजस्थान दलित आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वत: संज्ञान लें।

यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, पूरे दलित समाज की अस्मिता और अधिकारों पर हमला है।

शेर सिंह बौद्ध और भीमसेना जैसी ताकतें अगर ऐसे मामलों में आगे बढ़कर संघर्ष करें, तो न्याय संभव है।
लेकिन अगर चुने हुए दलित प्रतिनिधि चुप रहेंगे, तो यह चुप्पी इतिहास माफ नहीं करेगा।


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