स्कूलों में पढ़ाई जाए रामायण, महाभारत और गीता: राजस्थान विधानसभा:- बीजेपी विधायक बाबू सिंह राठौड़

संपादक:- ताराचन्द खोयड़ावाल 

राजस्थान विधानसभा में शिक्षा से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठा जब बीजेपी विधायक बाबूसिंह राठौड़ ने मांग की कि स्कूलों में रामायण, महाभारत और भगवद गीता को पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने शिक्षा की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान यह बयान दिया।

क्या कहा विधायक बाबूसिंह राठौड़ ने?

विधायक बाबूसिंह राठौड़ ने सरकार से मांग की कि जिस तरह स्कूलों में सूर्य नमस्कार अनिवार्य किया गया है, उसी तरह रामायण, महाभारत और गीता को भी शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाए। उनका कहना था कि इन ग्रंथों में नैतिकता, कर्तव्य, धर्म और जीवन के मूल्य सिखाने वाले संदेश हैं, जो बच्चों के चरित्र निर्माण में सहायक हो सकते हैं।

ग्रेड थर्ड शिक्षकों के तबादले का मुद्दा भी उठाया

उन्होंने शिक्षकों के तबादले को लेकर भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "आपने सभी के तबादले कर दिए, लेकिन ग्रेड थर्ड शिक्षक अब भी इंतजार कर रहे हैं। उनके तबादले अब तक नहीं हुए, आखिर उनकी गलती क्या है?" यह मुद्दा राज्य के शिक्षकों की प्रशासनिक समस्याओं से जुड़ा है, जिस पर सरकार को जवाब देना होगा।

शिक्षा में धार्मिक ग्रंथों को शामिल करने पर बहस

विधायक राठौड़ के इस बयान के बाद शिक्षा में धार्मिक ग्रंथों को शामिल करने को लेकर बहस तेज हो सकती है। कुछ लोगों का मानना है कि रामायण, महाभारत और गीता भारतीय संस्कृति और नैतिकता से जुड़े हैं, इसलिए इन्हें स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए।

वहीं, आलोचकों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में किसी विशेष धार्मिक ग्रंथ को पढ़ाना संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। उनका मानना है कि स्कूलों में सभी धर्मों की शिक्षा समान रूप से दी जानी चाहिए या शिक्षा को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष रखा जाना चाहिए।

सरकार का क्या रुख रहेगा?

अब देखना होगा कि राजस्थान सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है। क्या धार्मिक ग्रंथों को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाएगा, या यह केवल एक राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगा? साथ ही, ग्रेड थर्ड शिक्षकों के तबादले का मुद्दा भी शिक्षकों के लिए एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है।


रामायण, महाभारत और गीता को स्कूलों में पढ़ाने की मांग एक संस्कृति और शिक्षा से जुड़ा संवेदनशील विषय है। यह फैसला सरकार के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि यह न केवल शिक्षा नीति बल्कि संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे से भी जुड़ा हुआ है। आने वाले समय में इस पर सरकार और विपक्ष के बीच बहस और तेज हो सकती है।

 


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