आखिर क्यों बना हुआ है चर्चा का विषय कादर नंगला का सरकारी स्कूल?

✍️ अनिल बजाज — ब्यूरो चीफ, खैरथल-तिजारा

अध्यापक सुमित यादव ने अपने वेतन से खर्च किए 16 लाख रुपये
राज्य सरकार ने किया भामाशाह सम्मान से सम्मानित

खैरथल-तिजारा जिले के छोटे से गांव कादर नंगला का एक राजकीय विद्यालय इन दिनों पूरे राजस्थान में चर्चा का विषय बना हुआ है। वजह है इस विद्यालय के समर्पित अध्यापक सुमित कुमार यादव, जिन्होंने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया, बल्कि अपने वेतन का बड़ा हिस्सा—लगभग ₹16 लाख रुपये—विद्यालय के विकास पर खर्च कर दिया।

भव्य नहीं, पर प्रेरक है इनकी कहानी

सुमित यादव वर्ष 2012 से राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, कादर नंगला (मुंडावर) में कार्यरत हैं। वे खुद एक किराये के छोटे से कमरे में रहते हैं, उनके पास न कोई संपत्ति है और न ही कोई व्यवसाय। बावजूद इसके उन्होंने विद्यालय को एक आदर्श शिक्षण संस्थान में तब्दील कर दिया है।

भामाशाह सम्मान से हुआ सम्मानित

राज्य सरकार ने 28 जून 2025 को आयोजित समारोह में सुमित यादव को भामाशाह सम्मान से नवाजा। यह पुरस्कार उन्हें उनके "अद्वितीय योगदान और समाज के प्रति निस्वार्थ सेवा" के लिए दिया गया।

विद्यालय में किया कायापलट

जब सुमित यादव इस विद्यालय में आए थे, तब यहां की स्थिति अत्यंत दयनीय थी — जर्जर भवन, टपकती छतें, टूटी खिड़कियाँ, गंदगी और संसाधनों की भारी कमी। लेकिन आज...

📌 विद्यालय में अब है —

  • सुंदर और स्वच्छ भवन
  • वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
  • वृक्षारोपण अभियान
  • बच्चों को मुफ्त में जूते, मोजे, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी, बैग, टाई-बेल्ट आदि
  • फर्नीचर, गद्दे और टेबल-कुर्सियाँ
  • कंप्यूटर लैब और CCTV कैमरे
  • मां सरस्वती का मंदिर, मंच, सुंदर कार्यालय
  • पूरे परिसर में पेंटिंग और सौंदर्यकरण
  • लाइब्रेरी व ऑफिस हेतु अलमारी, बुकशेल्फ, रिवॉल्विंग चेयर, काउंटर डेस्क

सेवाभाव ही सबसे बड़ा धर्म

सुमित यादव केवल विद्यालय के विकास तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने अब तक 22 बार रक्तदान किया है और नेत्रदान की घोषणा भी कर चुके हैं।
वे विजन संस्थान, अलवर (जो ₹1 में भोजन देती है), तथा भवानी तोप अलवर में स्थित जीव संरक्षण केंद्र में अपनी नियमित सेवा देते हैं।

गांव के लिए बने प्रेरणा स्रोत

गांव के लोगों का कहना है कि पहले इस क्षेत्र में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं थी, लेकिन सुमित यादव की प्रेरणा से अब बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर जागरूक हो चुके हैं।


"सेवा ही परम धर्म है" — इस वाक्य को अपने जीवन का मूल मंत्र मानने वाले सुमित यादव आज सिर्फ एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक रोल मॉडल बन चुके हैं। वे साबित करते हैं कि बदलाव के लिए धन नहीं, संकल्प चाहिए।





























 


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