भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 (Article 13): संपूर्ण जानकारी सहित विस्तृत आर्टिकल


🏛️ परिचय: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 (Article 13) "मौलिक अधिकारों" (Fundamental Rights) के संरक्षण से संबंधित है। यह अनुच्छेद संविधान के भाग 3 (Part III) में आता है, जो नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है। इसका उद्देश्य है कि कोई भी कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।


📜 अनुच्छेद 13 के खंड (Clauses):

अनुच्छेद 13 को चार भागों में विभाजित किया गया है:


🔹 अनुच्छेद 13(1):

“संविधान के प्रारंभ (1950) से पूर्व भारत में लागू सभी कानून, जो इस संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रतिकूल हैं, वे उतने अंश तक शून्य (null and void) माने जाएंगे।”

🔸 उदाहरण:
अगर 1940 में बना कोई कानून धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव करता है, तो वह कानून 1950 के बाद अमान्य (null and void) हो जाएगा क्योंकि यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।


🔹 अनुच्छेद 13(2):

“राज्य ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों को नकारे या सीमित करे। अगर ऐसा कोई कानून बनाया जाता है, तो वह शून्य होगा।”

🔸 उदाहरण:
अगर संसद ऐसा कानून बनाए जो बोलने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को पूरी तरह समाप्त कर दे, तो वह कानून संविधान के अनुच्छेद 13(2) के तहत अमान्य होगा।


🔹 अनुच्छेद 13(3):

इस खंड में 'कानून' शब्द की व्याख्या की गई है:

  • 'कानून' में किसी अधिनियम, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, विनियम, अधिसूचना, प्रथा या रिवाज आदि सब शामिल हैं।
  • 'राज्य' में केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, पंचायतें, नगर पालिकाएं, लोक प्राधिकरण आदि शामिल हैं।

🔸 मतलब:
कोई भी परंपरा या प्रथा जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है — वह भी अमान्य हो सकती है।


🔹 अनुच्छेद 13(4):

“संविधान (42वें संशोधन) द्वारा जोड़ा गया यह खंड कहता है कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में किया गया कोई संशोधन अनुच्छेद 13 के अधीन नहीं आएगा।”

🔸 व्याख्या:
इसका उद्देश्य यह था कि संसद द्वारा संविधान संशोधन को "कानून" न माना जाए ताकि वह अनुच्छेद 13 की सीमाओं में न आए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस (1973) में यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी संशोधन संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) को नहीं बदल सकता।


⚖️ महत्वपूर्ण न्यायालय निर्णय:

1. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):

  • यह ऐतिहासिक फैसला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने "मूल संरचना सिद्धांत" (Basic Structure Doctrine) की घोषणा की।
  • कोर्ट ने कहा कि संविधान संशोधन मौलिक अधिकारों को खत्म नहीं कर सकता।

2. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967):

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद को मौलिक अधिकारों को छूने या बदलने का अधिकार नहीं है।

3. मीनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980):

  • कोर्ट ने अनुच्छेद 13 के तहत यह साफ किया कि संसद असीमित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती।

🧑‍⚖️ अनुच्छेद 13 का महत्व:

✅ यह मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देता है।
✅ यह राज्य की विधायी शक्ति को सीमित करता है।
✅ यह किसी भी दमनकारी कानून को रद्द करने का संवैधानिक आधार बनाता है।
✅ यह न्यायपालिका को यह अधिकार देता है कि वह असंवैधानिक कानूनों को निरस्त कर सके।


अनुच्छेद 13 संविधान का प्रहरी है जो नागरिकों को यह आश्वासन देता है कि उनके मौलिक अधिकार कभी भी किसी भी कानून के द्वारा छीने नहीं जा सकते। यह अनुच्छेद भारतीय लोकतंत्र के मूल स्तंभों में से एक है और भारत को एक न्यायपूर्ण समाज बनाए रखने में मदद करता है।

 


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