राजनीतिक जीवन की शुरुआत और उतार-चढ़ाव
कंवरलाल मीणा ने 2013 में राजस्थान के झालावाड़ जिले की मनोहरथाना विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट पर जीतकर पहली बार विधायक बने। सामाजिक रूप से प्रभावी माने जाने वाले मीणा ने इलाके में मजबूत पकड़ बनाई।
हालांकि 2018 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, लेकिन 2023 में उन्होंने अंता विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की।
2005 का विवादित मामला: जब एसडीएम पर तानी रिवॉल्वर
2005 में कंवरलाल मीणा ने झालावाड़ के अकलेरा क्षेत्र में उपसरपंच चुनाव के दौरान विरोध प्रदर्शन करते समय तत्कालीन SDM रामनिवास मेहता पर रिवॉल्वर तान दी थी और दो मिनट में पुनर्मतदान कराने का दबाव बनाया था।
यह घटना सरकारी काम में बाधा और धमकी की गंभीर धाराओं में दर्ज की गई थी।
2020 में सजा और अब हाईकोर्ट का फैसला
2020 में झालावाड़ की एडीजे कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा और जुर्माना सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ कंवरलाल मीणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
लेकिन अप्रैल 2025 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनकी अपील खारिज कर दी और निचली अदालत का फैसला कायम रखा।
अब उनके पास सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प बचा है।
अन्य आपराधिक मामले और विवाद
कंवरलाल मीणा के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
2016 में उन्होंने "जवाबदेही यात्रा" के दौरान सामाजिक कार्यकर्ताओं और RTI एक्टिविस्टों पर हमला किया, जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी।
इसके अलावा उन पर हत्या के प्रयास, लोकसेवक को डराने-धमकाने, और कानून व्यवस्था बिगाड़ने के अन्य मामले भी चल रहे हैं।
अब क्या होगा? विधायकी पर मंडराया खतरा
चूंकि अब राजस्थान हाईकोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली है, जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8 के अनुसार दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है।
ऐसे में कंवरलाल मीणा की अंता सीट से विधायकी समाप्त हो सकती है, और उन्हें चुनाव लड़ने से भी अयोग्य ठहराया जा सकता है।
अब गेंद चुनाव आयोग और विधानसभा सचिवालय के पाले में है कि वे इस पर क्या कार्रवाई करते हैं।
कंवरलाल मीणा की कहानी एक ऐसे जनप्रतिनिधि की है, जो जनता के बीच लोकप्रिय तो रहा, लेकिन अपने ही कर्मों के कारण आज राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। उच्च न्यायालय का फैसला अब उनके लिए निर्णायक साबित हो सकता है — और शायद भाजपा के लिए भी एक कठिन राजनीतिक निर्णय का समय।