"10 चीखें रोज़: भारत में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार का सच"

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

दलित महिलाओं के खिलाफ हिंसा: एक सामाजिक विश्लेषण

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में जाति व्यवस्था हजारों साल पुरानी है। दलित समुदाय को सदियों तक सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक रूप से हाशिये पर रखा गया। महिलाओं की स्थिति तो और भी दयनीय रही — वे दोहरी उत्पीड़न की शिकार बनीं: एक तो जातिगत भेदभाव और दूसरा लैंगिक भेदभाव।

2. वर्तमान स्थिति

NCRB के अनुसार, भारत में प्रतिदिन औसतन 10 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। ये आंकड़े सिर्फ दर्ज मामलों के हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत इससे भी भयावह हो सकती है क्योंकि कई मामले सामाजिक दबाव, पुलिस की असंवेदनशीलता और न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता के कारण दर्ज ही नहीं होते।

3. प्रमुख कारण

  • जातिगत वर्चस्व: ऊंची जातियों का सामाजिक प्रभुत्व कई बार दलित महिलाओं के प्रति यौन हिंसा को "दबाने" के औजार की तरह इस्तेमाल करता है।
  • कानूनी लापरवाही: SC/ST एक्ट जैसे सख्त कानूनों के बावजूद पुलिस और न्यायपालिका का ढीला रवैया पीड़ितों को न्याय से दूर रखता है।
  • शिक्षा व जागरूकता की कमी: दलित महिलाओं की शिक्षा, जागरूकता और आर्थिक स्वतंत्रता का अभाव उन्हें शोषण का आसान शिकार बनाता है।

4. मीडिया और समाज का रवैया

मुख्यधारा मीडिया में दलित महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों को बहुत कम जगह मिलती है। जब कोई घटना सुर्खियों में आती है, तो उसे या तो जल्द भुला दिया जाता है या पीड़िता की पहचान उजागर करके उसका पुनः शोषण किया जाता है।

5. समाधान के संभावित रास्ते

  • सख्त कानूनी कार्रवाई और त्वरित न्याय प्रणाली।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सुरक्षा और हेल्पलाइन नेटवर्क का विस्तार।
  • दलित महिला संगठनों को सशक्त बनाना और नेतृत्व में भागीदारी।
  • शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की शुरुआत।
  • मीडिया को संवेदनशील बनाना ताकि वो इस विषय पर निष्पक्ष और सक्रिय भूमिका निभाए।

लेखक एवं RTI कार्यकर्ता:- ताराचन्द खोयड़ावाल
संपादक एवं संस्थापक: प्रगतिन्यूज़, मजदूर विकास फाउंडेशन

 


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