काश! लड़कों के लिए भी कोई कानून होता

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मोहित यादव की मौत ने खड़ा किया गंभीर सवाल

इटावा (उत्तर प्रदेश):
इंजीनियर मोहित यादव की आत्महत्या ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। एक होनहार युवा, जो जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता था, जिसने अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए इंजीनियरिंग की, उसे आखिर ऐसा क्या तोड़ गया कि उसने खुद को खत्म करने का फैसला ले लिया?

मोहित ने मरने से पहले जो वीडियो रिकॉर्ड किया, वह केवल एक सुसाइड नोट नहीं, बल्कि समाज और कानून व्यवस्था पर एक करारी टिप्पणी है। उसने कहा — "काश! लड़कों के लिए भी कोई कानून होता।" यह एक ऐसा वाक्य है, जो किसी भी संवेदनशील इंसान को अंदर तक हिला देने के लिए काफी है।

मोहित का आरोप है कि उसकी पत्नी और ससुराल वालों ने उसे मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया कि उसे आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ा। उसने वीडियो में बताया कि उसकी पत्नी ने उस पर झूठे दहेज के आरोप लगाने की धमकी दी, और जबरदस्ती गर्भपात कराया। सवाल यह है कि क्या कोई कानून इस तरह की प्रताड़ना से पुरुषों को बचा सकता था?

लिंग-निरपेक्ष कानूनों की जरूरत

हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई सशक्त कानून हैं — जैसे दहेज प्रताड़ना (धारा 498A), घरेलू हिंसा अधिनियम, आदि। ये कानून जरूरी भी हैं, क्योंकि महिलाएं वर्षों से अत्याचार झेलती आई हैं। लेकिन जब इन कानूनों का दुरुपयोग होता है, और निर्दोष पुरुष व उनके परिवार इसके शिकार बनते हैं, तो फिर न्याय का संतुलन डगमगाने लगता है।

भारत में अभी भी पुरुषों के लिए घरेलू हिंसा या मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ कोई स्पष्ट और मजबूत कानून नहीं है। न ही कोई राष्ट्रीय आयोग है जो पुरुषों के मामलों की सुनवाई करे, जैसे महिलाओं के लिए ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ है।

आत्महत्या नहीं, सिस्टम पर सवाल

मोहित की आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है। यह हमारे सिस्टम, समाज और सोच पर एक सवाल है। क्या केवल महिला होना ही पीड़ित होने की गारंटी है? क्या पुरुष को सिर्फ कमाने और सहने वाला समझा जाएगा?

यदि मोहित के जैसे मामलों की संख्या बढ़ रही है — और आंकड़े बताते हैं कि दहेज प्रताड़ना के केसों में से बड़ी संख्या झूठे निकलते हैं — तो हमें इसपर खुलकर चर्चा करनी चाहिए।

क्या हो अगला कदम?

  1. लिंग-निरपेक्ष कानून बनाने की जरूरत — घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न के खिलाफ कानून पुरुषों के लिए भी हों।
  2. पुरुष आयोग की स्थापना — पुरुषों की समस्याएं उठाने और समाधान के लिए एक वैधानिक निकाय बनाया जाए।
  3. फर्जी मामलों पर सख्त कार्रवाई — यदि कोई महिला झूठा केस दर्ज कराती है, तो उस पर भी कानूनी कार्रवाई हो।
  4. मानसिक स्वास्थ्य पर फोकस — पुरुषों को भी काउंसलिंग और सहायता सेवाएं सुलभ कराई जाएं।

मोहित की पुकार को अनसुना न करें

मोहित चला गया। लेकिन उसकी आवाज गूंज रही है — "काश! लड़कों के लिए भी कोई कानून होता।" यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि हजारों पुरुषों की चुप पीड़ा है, जिसे समाज अक्सर नज़रअंदाज़ कर देता है।

अब समय आ गया है कि हम आंखें खोलें, कान खोलें और सबसे ज़रूरी — दिल खोलें। ताकि अगला मोहित हमें अलविदा कहने से पहले सुना जा सके, बचाया जा सके।



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