दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: नाबालिग के होंठों को छूना हमेशा POCSO के तहत गंभीर अपराध नहीं


दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा नाबालिग लड़की के होंठों को छूने और उसके पास सोने में कोई स्पष्ट यौन उद्देश्य नहीं है, तो इसे POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन हमला नहीं माना जा सकता।


क्या कहा कोर्ट ने?

हाईकोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट के तहत अपराध तय करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक "यौन इरादा" होता है। यदि कोई कृत्य केवल शारीरिक संपर्क तक सीमित है, लेकिन उसमें यौन उद्देश्य नहीं दिखता, तो यह कानून की धारा 10 के तहत गंभीर यौन हमला नहीं होगा।

हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि यह साबित होता है कि आरोपी ने नाबालिग लड़की की मर्यादा भंग करने की नीयत से ऐसा किया, तो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 लागू होगी।


फैसले का असर और कानूनी दृष्टिकोण

इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि POCSO एक्ट के तहत किसी भी मामले में "यौन इरादे" को साबित करना जरूरी है। यदि आरोपी के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं जो यौन हमले के इरादे को दर्शाते हों, तो उसे POCSO के तहत गंभीर सजा नहीं दी जा सकती।

हालांकि, यह भी सच है कि IPC की धारा 354 (महिला की गरिमा भंग करने का अपराध) का इस्तेमाल ऐसे मामलों में किया जा सकता है, जहां पीड़िता को मानसिक या शारीरिक रूप से असहज करने का इरादा साबित होता है।


POCSO एक्ट का उद्देश्य

POCSO एक्ट को बाल यौन शोषण के खिलाफ कड़े प्रावधानों के लिए लाया गया था, ताकि नाबालिगों को सुरक्षा दी जा सके। इस कानून में किसी भी प्रकार के यौन हमले, उत्पीड़न और शोषण के लिए सख्त सजा का प्रावधान है। हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने यह कहा कि हर शारीरिक संपर्क को यौन हमला नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसमें स्पष्ट यौन उद्देश्य न हो।


दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह POCSO एक्ट और IPC की धाराओं के बीच स्पष्ट विभाजन करता है। यह न केवल आरोपों की गहन जांच की जरूरत को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और केवल उन्हीं मामलों में कड़ी सजा दी जाए, जहां यौन इरादा साबित होता है।

 


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