सांसद हनुमान बेनीवाल ने आज लोक सभा में भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पर हुई विशेष चर्चा में भाग लिया और कई अहम मुद्दों पर व दलित उत्पीड़न पर भी अपनी बात रखी

हिंदुस्तान में प्रत्येक नागरिक को वोट का अधिकार देने की पहल बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी ने की थी और हमें भी इस बात का गर्व है की हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहते है जहाँ संविधान रूपी पवित्र ग्रन्थ को सर्वोच्य आदर्श मानकर देश की रीति- नीति बनती है ऐसे में जिनकी वजह से यह देश आजाद हुआ और जिनकी वजह से आजाद भारत में संविधान अंगीकृत हुआ उनका मान- सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है।


संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर जी ने कहा था कि संविधान मात्र कानूनी दस्तावेज नहीं है,यह हमारे जीवन का सारथी है और सामयिक आवश्यकताओ के अनुरूप है और 26 नवम्बर 1949 को हम भारत के लोगो ने स्वतंत्र भारत के संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मसमर्पित करने का संकल्प लिया था और 


संविधान की इस गौरवमयी यात्रा को आगे बढ़ते -बढ़ते जब हम देखते है तो नजर आता है कि आज भी देश के किसी न किसी कोने में दलित, पिछड़ा व आदिवासी भाई समानता के अधिकार को प्राप्त करने के झुंझ रहा है। 


राजस्थान के जालौर जिले के सायला तहसील के सुराणा गांव में कथित तौर पर पानी की मटकी छूने पर हुई पिटाई से नौ वर्षीय दलित छात्र इंद्र मेघवाल की मृत्य हुई, पाली के सरकारी हॉस्पिटल में कार्यरत कोविड हेल्थ सहायक जितेंद्र मेघवाल की हत्या केवल इस बात के लिए कर दी क्योंकि वो मुच्छ रखता था वहीं हाल ही में बालोतरा में हुए विशनाराम मेघवाल की हत्या तथा नागौर संसदीय क्षेत्र की खींवसर विधानसभा के तांतवास गाँव में मेघवाल समाज के परिवार को कुछ दबंगो द्वारा की गई पिटाई का जिक्र करते हुए मैने सदन में कहा कि राजस्थान में भाजपा की सरकार है परन्तु दलितों को न्याय नहीं मिल रहा है इसलिए आज जब हम संविधान पर चर्चा कर रहे है तो हमें यह बात भी सोचने की जरुरत है की कानून में प्रभावी सजा होने के बावजूद दलितों और पिछड़ो को समानता के अधिकार को पाने के लिए झुंझना पड़ता है,राष्ट्रपति महोदया द्वारा 26 नवम्बर 2024 को दिए गए वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा था कि बाबा साहब अम्बेडकर की प्रगतिशील और समावेशी सोच की छाप हमारे संविधान पर अंकित है का जिक्र करते हुए लोक सभा में मैंने कहा कि इस बात को देश की सरकार आत्मसात करे और यह सोचे की बाबा साहब की समावेशी सोच के अनुसार कार्य क्यों नहीं हो रहे है ? 


सदन में भाजपा के साथी सांसदों ने देश में लगाए गए आपातकाल का जिक्र किया ,निश्चित तौर पर इमरजेंसी देश की आत्मा पर चोट थी लेकिन इंदिरा गांधी जी की दृढ इच्छा शक्ति ने एक झटके में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करके नया राष्ट्र बना दिया उसका भी जिक्र यदि सत्ता पक्ष के सांसद करते करते तो शायद अच्छा रहता ,उस समय घोषित आपातकाल था लेकिन आज जो अघौषित आपातकाल है उसके बारे में कौन बोलेगा ?  


क्योंकि आज कोई भी सिस्टम के खिलाफ बोलता है तो सीबीआई,ईडी जैसी एजेंसियों से उनकी आवाज को दबा दिया जाता है ,लोकतंत्र में सभी अधिकार सम्मान रूप से लागू होने के बावजूद इस देश के अन्नदाताओ को एमएसपी पर कानून बनाने की मांग,काले कानून वापिस लेने सहित अन्य मांगो के लिए लम्बा आन्दोलन करना पड़ा, 700 से ज्यादा किसान शहीद हुए और तमाम हालातो को देखकर लगा की एक तरफ देश की सरकार आजादी के अमृत महोत्सव की बात कर रही है दूसरी तरफ देश की चुनी हुई सरकार को किसानो को आर्थिक न्याय नहीं दे पा रही है ,


संविधान में सहमती और असहमति दोनों को एक सम्मान मूल्य के रूप में देखा गया लेकिन आज क्या हालात है ,कोई भी सांसद, कोई नेता,कोई भी व्यक्ति सरकार के किसी निर्णय में असहमति व्यक्त कर दे तो उसे अलग नजरो से देखा जाने लगा ,सत्ता में बैठे लोग असहमति व्यक्त करने वालो को अलग- अलग संज्ञा देने लग गए वहीं मणिपुर राज्य के हालातों पर भी अपनी बात रखी 



 


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