चंडीगढ़। पंजाब विश्वविद्यालय में भारतीय संविधान की सफलता और उसमें नेताओं की भूमिका पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में उसकी उपलब्धियों और विश्व के अन्य संविधानों से तुलना करना था।
सम्मेलन में श्रीलंका के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीटर मोहन मैत्री पीरस ने संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संविधान की सफलता का आधार केवल उसका संस्थागत ढांचा या डिज़ाइन नहीं है, बल्कि यह काफी हद तक उन नेताओं पर निर्भर करता है, जो इसे लागू करते हैं। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान का वास्तविक मूल्य तभी सामने आता है जब उसे अच्छे नेतृत्व और व्यवहारिक दृष्टिकोण से लागू किया जाए।
इस अवसर पर न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता ने भी संविधान की कार्यप्रणाली और इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है, जिसकी सफलता निरंतर बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्यों के अनुरूप नेताओं की प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है।
सम्मेलन में विभिन्न देशों के विशेषज्ञों और विद्वानों ने भी भाग लिया और भारतीय संविधान की ताक़त, लोकतांत्रिक व्यवस्था तथा इसके वैश्विक महत्व पर अपने विचार साझा किए।